The Samachar Express

Cash Case वाले Justice Yashwant Varma ने जुडिशरी की उड़ा दी नींद, CJI Gavai से सीधी भिड़ंत, कहा- CJI जजों के भाग्य निर्धारक नहीं



 ## 🔥 “जली हुई नकदी कांड” पर न्यायिक भूचाल: जस्टिस वर्मा की आखिरी चाल

**लेखक: रंजीत झा | स्रोत: समाचार एक्सप्रेस**

भारत की न्यायिक व्यवस्था में उस समय उथल-पुथल मच गई जब हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी बर्खास्तगी से पहले सुप्रीम कोर्ट में सीधा मुकदमा दायर कर दिया। “जली हुई नकदी कांड” से शुरू हुआ यह विवाद अब महाभियोग की प्रक्रिया तक पहुंचने वाला है।

Watch Video :  कैश कांड वाले ज. वर्मा ने जुडिशरी की उड़ा दी नींद, CJI गवई से सीधी भिड़ंत, पूर्व CJI खन्ना को भी घसीटा 



### 📌 क्या है पूरा मामला?

जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास पर लगी आग के बाद भारी मात्रा में जल चुकी नकदी बरामद हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमेटी ने जांच की और सिफारिश की कि उन्हें पद से हटाया जाए। लेकिन जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठाए, जो भारत के न्यायिक इतिहास में दुर्लभ और गंभीर मामला बन गया।

## 🧠 जस्टिस वर्मा की पांच प्रमुख दलीलें

### 1️⃣ इन-हाउस प्रक्रिया को बताया असंवैधानिक

वर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में जो इन-हाउस प्रक्रिया अपनाई थी, वह संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 से मेल नहीं खाती। संसद को ही अधिकार है न्यायाधीशों को हटाने का, इसलिए इस जांच को उन्होंने असंवैधानिक करार दिया।

यह भी पढें/देखें : IIM-IITian का 6 Highcourt Judges पर FIR केस से मचा हड़कंप, Supreme Court ने फेमस पूर्व चीफ जस्टिस से तुरंत..

### 2️⃣ सीजेआई का हाई कोर्ट पर नियंत्रण नहीं

उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को हाई कोर्ट के जजों पर किसी प्रकार की अनुशासनात्मक शक्ति नहीं दी गई है। वर्मा ने सीजेआई संजीव खन्ना और बी. आर. गवई को भाग्य विधाता कहने से इनकार करते हुए उनके अधिकारों पर भी सवाल उठाए।

3️⃣ इन-हाउस रिपोर्ट पर उठाया सवाल

वर्मा ने आरोप लगाया कि जांच रिपोर्ट में उन्हें भाग लेने का मौका नहीं दिया गया। न तो उन्हें समुचित सूचना दी गई, न साक्ष्य जुटाने में शामिल किया गया। सीसीटीवी फुटेज जैसी अहम साक्ष्य की अनदेखी भी उनके आरोपों में शामिल है।

4️⃣ रिपोर्ट समीक्षा का समय नहीं मिला

वे कहते हैं कि उन्हें समिति की अंतिम रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं मिला। रिपोर्ट आने के तुरंत बाद उन्हें इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का दबाव डाला गया, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।


### 5️⃣ मीडिया ट्रायल का शिकार होने का दावा


जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट पर आरोप लगाया कि उनकी जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करके उन्हें मीडिया ट्रायल का शिकार बनाया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और करियर पर गहरा आघात हुआ।

## 🕵️‍♂️ इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट: क्या था निष्कर्ष?

पंजाब-हरियाणा, हिमाचल और कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति ने 25 पन्नों की रिपोर्ट में कहा:

- जली हुई नकदी जस्टिस वर्मा के बंगले से मिली

- उनका व उनके स्टाफ का व्यवहार असामान्य रहा

- वर्मा नकदी को हटाने की कोशिश करते पाए गए

- उन्होंने फॉरेंसिक जांच की मांग की, पर समिति ने साक्ष्यों को पर्याप्त बताया


आधार पर समिति ने उन्हें हटाने की सिफारिश की जिसे तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने स्वीकार किया और प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को पूरी रिपोर्ट भेज दी।

## 🧩 अब क्या होगा आगे?

अब जबकि वर्तमान सीजेआई बी. आर. गवई हैं, मामला और पेचीदा हो गया है। वर्मा की याचिका ने सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया और शक्तियों की परिभाषा को ही चुनौती दे दी है। इस केस में कानूनी और राजनीतिक दखल की भी संभावना है, क्योंकि उपराष्ट्रपति धनखड़ भी इन-हाउस प्रक्रिया पर सवाल उठा चुके हैं।

## ⚖️ निष्कर्ष: एक ऐतिहासिक मोड़

इस विवाद से कई सवाल खड़े हो गए हैं:

- क्या इन-हाउस जांच व्यवस्था संविधान से मेल खाती है?

- क्या जस्टिस वर्मा को निष्पक्ष सुनवाई मिली?

- क्या यह मामला न्यायिक सुधार की दिशा में एक नया अध्याय खोलेगा?

इस पूरे घटनाक्रम ने भारत की न्यायिक पारदर्शिता, शक्तियों के विभाजन और मीडिया की भूमिका को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है। आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न सिर्फ वर्मा के भविष्य को तय करेगा, बल्कि न्यायपालिका की साख को भी चुनौती देगा।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने