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चुनाव पर चहेते 'CJI' को बुलाना मोदी को पड़ा भारी, CEC ज्ञानेश के उड़े होश


 
**एक राष्ट्र, एक चुनाव पर संवैधानिक सवाल: संक्षिप्त रिपोर्ट**


11 जुलाई 2025 को पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवा चंद्रचूड़ और जे.एस. खेहर ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष "एक राष्ट्र, एक चुनाव" विधेयक पर अपनी राय रखी, जिसने सरकार और मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को असहज कर दिया। पत्रकार रंजीत झा ने इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की, जिसमें विधेयक की संवैधानिक खामियों और इसके लोकतंत्र पर प्रभाव को उजागर किया गया। यह रिपोर्ट उनके विश्लेषण का सार प्रस्तुत करती है।



चंद्रचूड़ ने कहा कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" संवैधानिक रूप से गलत नहीं है, जिससे सरकार को शुरुआती राहत मिली। लेकिन उन्होंने विधेयक के सेक्शन 82 ए5 पर सवाल उठाया, जिसमें चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह किसी राज्य के विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव के साथ न कराने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है। इस स्थिति में चुनाव कितने समय तक टाले जा सकते हैं, यह अस्पष्ट है। यदि राष्ट्रपति अनिश्चितकाल के लिए फैसला न लें, तो उस राज्य की जनता का लोकतांत्रिक अधिकार प्रभावित होगा। चंद्रचूड़ ने अप्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का समर्थन किया, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए बिलों पर समयबद्ध फैसले की बात कही थी, ताकि मनमानी रोकी जाए। यह टिप्पणी सरकार, विशेषकर उपराष्ट्रपति धनखड़, जिन्होंने इस फैसले पर नाराजगी जताई थी, के लिए झटका थी।


चंद्रचूड़ ने विधेयक की दो अन्य खामियों को रेखांकित किया। पहला, राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल एक साल तक बढ़ सकता है, लेकिन इस दौरान एक साथ चुनावों का तालमेल कैसे होगा, यह स्पष्ट नहीं है। दूसरा, यदि किसी राज्य की विधानसभा समय से पहले भंग होती है, तो उसके चुनाव को लोकसभा और अन्य राज्यों के साथ समन्वय करने का तरीका अस्पष्ट है। ये खामियां संवैधानिक संकट पैदा कर सकती हैं।


उन्होंने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को असीमित शक्ति देने के बजाय संसद या केंद्रीय मंत्रिपरिषद को निर्णय का अधिकार मिलना चाहिए, जिसमें विपक्ष की भागीदारी से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी। हाल के समय में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं, खासकर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया और वोटर लिस्ट सत्यापन में अनियमितताओं के कारण। ऐसे में आयोग को अधिक शक्ति देना जोखिम भरा हो सकता है।


विपक्ष, विशेषकर प्रियंका गांधी, का तर्क है कि एक साथ चुनाव से स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे। हालांकि, चंद्रचूड़ ने इसे खारिज करते हुए कहा कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय चर्चा का हिस्सा बन सकते हैं। फिर भी, उन्होंने जोर दिया कि विधेयक को मजबूत करने के लिए संशोधन जरूरी हैं, वरना यह सरकार के लिए झटका साबित होगा।


यह मुद्दा केवल सरकार और विपक्ष की बहस नहीं, बल्कि लोकतंत्र का सवाल है। यदि किसी राज्य का चुनाव टलता है, तो जनता का अधिकार प्रभावित होगा। "एक राष्ट्र, एक चुनाव" देश को एकजुट करने का सपना हो सकता है, लेकिन इसके रास्ते में संवैधानिक चुनौतियां हैं। चंद्रचूड़ की चेतावनी सरकार के लिए एक आईना है, जो जल्दबाजी में लिए गए फैसले के दुष्परिणामों की ओर इशारा करती है।

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