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कंटेम्प्ट केस में CJI गवई के सामने , फंसे CM योगी, होम सेक्रेट्री को भी लगा कोर्ट में जोरदार...

 



नमस्कार मैं हूँ रणजीत झा और आप देख रहे है दी समाचार एक्सप्रेस, CJI गवई के सामने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के केस में फंस गए हैं। इतना ही नहीं  सीएम योगी के सिस्टम की मनमानी पर हाईकोर्ट भी आगबबूला हो रखा है और ताबड़तोड़ कार्रवाई की रिपोर्ट भी सामने आई है।साफ मालूम पड़ रहा है कि  गर्मी छुट्टी के बाद अदालतें फुल एक्शन में लौट आई है ।cji गवई और उनके धाकड़ जजों ने अपने तेवर साफ कर दिए हैं। लिहाजा योगी govt को सीधे सुप्रीम कोर्ट में घसीटा गया है। दूसरी तरफ उनके पुलिसिया तंत्र की हेकड़ी हाईकोर्ट ने निकाल डाली है। एसपी से होम सेकेट्री तक और लेकर सिपाही से दरोगा तक को दिन में तारे दिखा दिए गए हैं। तो आइए आज आपको यूपी की 3 ऐसी रिपोर्ट बताने जा रहे हैं जहां योगी बाबा की पुलिस ने हदें पार की तो कोर्ट भी उन्हें अपनी ताकत दिखा गया है।



#### **सेगमेंट 1: योगी जी की मनमानी - QR कोड का खेल क्यों?**

दोस्तों, सवाल ये है कि आखिर योगी जी और उनकी सरकार को बार-बार कानून की हदें लांघने की क्या मजबूरी है? पिछले साल, यानी 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों से उनकी पहचान (नाम और मालिक का नाम) सार्वजनिक करने पर साफ-साफ रोक लगा दी थी। जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा था कि ऐसा करना गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है और सामाजिक तनाव पैदा कर सकता है। लेकिन क्या योगी जी ने इस फैसले को माना? बिल्कुल नहीं! इस साल, 2025 में, जब कांवड़ यात्रा शुरू हुई, तो योगी सरकार ने चालाकी से QR कोड का हथियार निकाल लिया। 11 जुलाई से दुकानदारों को अपने मालिकों की जानकारी और शिकायत के लिए QR कोड चिपकाने का फरमान सुनाया गया। अब सवाल उठता है - योगी जी, आप सुप्रीम कोर्ट की अवमानना क्यों कर रहे हैं? क्या आपको अदालत का डर नहीं, या फिर आपकी हिम्मत इतनी बुलंद हो गई है कि कानून आपके लिए बेमानी हो गया?

 

इसके पीछे का मकसद क्या है? दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके साफ कहा कि ये QR कोड वाला नियम पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाने की कोशिश है। उनकी दलील है कि इससे मुस्लिम और अनुसूचित जाति के दुकानदारों को निशाना बनाया जा रहा है, और ये धार्मिक भेदभाव का खेल है। सोचिए, एक दुकानदार अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए मेहनत करता है, और योगी सिस्टम उसका पेट पर लात मारने की साजिश रच रहा है! 2017 के एक शोध के मुताबिक, जब दुकानदारों की पहचान सार्वजनिक करने का दबाव डाला जाता है, तो सामाजिक तनाव 30% तक बढ़ जाता है। फिर भी योगी जी को ये सब दिखाई नहीं देता? क्या ये उनकी नाकामी नहीं, या फिर जानबूझकर अल्पसंख्यकों को डराने की सियासत? मामला 15 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए है,  मामला सीधे कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का है और अब देखना ये है कि कोर्ट योगी सरकार पर क्या एक्शन लेती है। अगर देखा जाए तो बुलडोजर एक्शन पर रोक के बाद भी योगी जी का प्रशासन अपनी आदत से बाज नहीं आया है लिहाजा कंटेम्प्ट के कई केस सुप्रीम कोर्ट में जा रहे है बदले में कार्रवाई के नाम पर कई आर्डर ऐसे है जो योगी जी के बेलगाम सिस्टम के होश उड़ा रखे है। लाखों का जुर्माना और घर बनवाने के आर्डर भी पड़ रहे है। ऐसे में यहां भी कुछ बड़े निर्णय की उम्मीद की जा रही है।

 

#### **सेगमेंट 2: हाईकोर्ट ने पुलिस की हेकड़ी निकाली - सिपाही से लेकर SP तक बेनकाब!**

अब बात करते हैं दूसरी रिपोर्ट की, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी की पुलिस की इतनी हेकड़ी निकाली कि सिपाही से लेकर एसपी तक कांप गए! मामला है जौनपुर का, जहां 90 साल के बुजुर्ग याचिकाकर्ता गौरी शंकर सरोज ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि बड़ागांव में पुलिस और लेखपाल उनकी जमीन पर अत्याचार कर रहे हैं। लेकिन योगी की पुलिस ने क्या किया? उन्होंने न सिर्फ बुजुर्ग को धमकाया, बल्कि उनके पोते को अवैध हिरासत में लेकर 2000 रुपये की रिश्वत वसूलकर छोड़ा! जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने इस पर सख्त रुख अपनाया और एसपी जौनपुर को जांच का आदेश दिया।

 

जांच में क्या हुआ? एसपी ने माना कि थाना प्रभारी मुंगरा बादशाहपुर और कांस्टेबल पंकज मौर्य, नितेश गौड़ गलत थे। नतीजा? इन तीनों को निलंबित कर दिया गया, और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज की गई। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। याचिकाकर्ता के वकील विष्णु कांत तिवारी ने कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि 9 जुलाई की रात पुलिस उनके घर पहुंची, उनके पिता से बदतमीजी की, और गिरफ्तारी का माहौल बनाया। ट्रूकालर पर एसएचओ मुंगरा का नाम दिखाकर उन्हें थाने बुलाने की कोशिश की गई। अब सोचिए, अगर वकील को ही डराया जाएगा, तो आम आदमी का क्या हाल होगा?

 

कोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी की - "अगर वकील को डराया जाएगा, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। ये आपराधिक अवमानना का मामला है!" कोर्ट ने साफ कहा कि बिना अनुमति पुलिस वकील से संपर्क नहीं करेगी, न ही गिरफ्तार करेगी, न ही उनके घर आएगी। अपर मुख्य सचिव (गृह) और एसपी जौनपुर को 15 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया। योगी जी, आपकी पुलिस इतनी बेलगाम कैसे हो गई? क्या ये आपकी नाकामी नहीं कि आपके सिपाही रिश्वतखोरी और धमकी देने में लगे हैं?

 

#### **सेगमेंट 3: बलिया SP की करतूत - कोर्ट ने लगाई फटकार!**

तीसरी रिपोर्ट और भी रोचक है। बलिया के SP ओमवीर सिंह ने कोर्ट के आदेश को ही FIR बना डाला, और अब उनकी शामत आ गई है! मामला 2016 का है, जब देवेंद्र कुमार सिंह ने एक नौकरी की नियुक्ति को लेकर याचिका दायर की थी। विवाद था कि राम प्रीत सिंह की सर्विस बुक में उनकी जन्म तारीख और रिटायरमेंट की तारीख से छेड़छाड़ हुई। कोर्ट ने 29 मई 2025 को SP को आदेश दिया कि मूल सर्विस बुक गायब होने और डुप्लिकेट बनाने की जांच के लिए FIR दर्ज करें। लेकिन SP ने क्या किया? उन्होंने कोर्ट के आदेश को सीधे FIR में डाल दिया और निजी शिकायतकर्ता को सूचनादाता दिखा दिया!

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर हैरानी जताई और इसे "प्रथम दृष्टया अवमानना" और "खुलेआम गैरकानूनी" करार दिया। कोर्ट ने SP से पूछा - "आपने कोर्ट के आदेश को FIR क्यों बनाया? इसकी व्याख्या करें, वरना FIR रद्द करके नई FIR दर्ज होगी!" SP को एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया, और मामला 14 जुलाई 2025 को सुनवाई के लिए है। योगी जी, आपका SP कानून को ताक पर रखकर कोर्ट का मजाक उड़ा रहा है, और आप चुप्पी साधे हैं? क्या ये आपकी पुलिस का असली चेहरा नहीं?

#### **निष्कर्ष: योगी सिस्टम की पोल खुली!**

दोस्तों, ये तीनों मामले साफ करते हैं कि योगी सरकार और उनकी पुलिस कितनी मनमानी पर उतर आई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाकर QR कोड थोपना, पुलिस की रिश्वतखोरी और धमकी, और अब SP का कोर्ट के आदेश को तोड़-मरोड़कर पेश करना - ये सब योगी सिस्टम की नाकामी का सबूत है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि गृह सचिव से लेकर सिपाही तक को जवाब देना पड़ेगा। तो योगी जी, अब क्या बहाना बनाएंगे? क्या आपकी पुलिस को लगाम लगेगी, या फिर कोर्ट को और सख्त कदम उठाने पड़ेंगे? आप बताएं, अपनी राय कमेंट में जरूर दें। हम *द समाचार एक्सप्रेस* के साथ फिर मिलेंगे, तब तक के लिए नमस्कार!**

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