नमस्ते, मैं रंजीत झा हूं और आप देख रहे हैं द समाचार एक्सप्रेस। आज हम एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करेंगे, जो बिहार की मतदाता सूची और सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नई जनहित याचिका से जुड़ा है। यह याचिका चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही है और इसने देश भर में हलचल मचा दी है। आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं।
### याचिका का सार और उसका महत्व
सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसे अधिवक्ता रोहित पांडे ने प्रस्तुत किया है। इस याचिका में 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान बेंगलुरु सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं की जांच की मांग की गई है। यह मांग विशेष रूप से विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए वोट चोरी के आरोपों से प्रेरित है। राहुल गांधी ने बिहार में अपनी वोटर अधिकार यात्रा के दौरान चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि आयोग ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर मतदाता सूची में हेरफेर किया है। इन आरोपों के बाद, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि मतदाता सूची की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए, जिसकी अध्यक्षता किसी पूर्व जज करें।
### याचिका में उठाए गए प्रमुख बिंदु
1. **मतदाता सूची में अनियमितताएं**: याचिका में दावा किया गया है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हैं। अधिवक्ता रोहित पांडे ने अपनी स्वतंत्र जांच में पाया कि बेंगलुरु सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र में 409 अवैध मतदाता और 10,452 डुप्लीकेट प्रविष्टियां थीं। इसके अलावा, कुछ मतदाताओं के पास अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग EPIC (वोटर ID) नंबर थे, जबकि EPIC नंबर यूनिक होना चाहिए। एक ही पते और पिता के नाम के साथ कई मतदाता दर्ज थे, और एक मामले में एक छोटे से घर के पते पर 80 मतदाता दर्ज थे। ये सभी उदाहरण मतदाता सूची की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं।
2. **संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन**: याचिकाकर्ता का कहना है कि यदि मतदाता सूची में छेड़छाड़ सिद्ध हो जाती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 के तहत "एक व्यक्ति, एक वोट" के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। यह अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), और अनुच्छेद 324 (स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव) के तहत लोकतांत्रिक शासन में सार्थक भागीदारी के अधिकार को भी प्रभावित करता है।
3. **चुनाव आयोग के लिए दिशानिर्देश**: याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयोग को मतदाता सूची की पारदर्शिता, जवाबदेही और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य दिशानिर्देश जारी किए जाएं। इनमें डुप्लीकेट और फर्जी प्रविष्टियों को रोकने के उपाय, मतदाता सूची को मशीन-पठनीय (machine-readable) और OCR-संगत प्रारूप में प्रकाशित करना, ताकि इसका सत्यापन, ऑडिट और सार्वजनिक जांच संभव हो, शामिल हैं।
4. **स्वतंत्र ऑडिट की मांग**: याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि जब तक मतदाता सूची का स्वतंत्र ऑडिट नहीं हो जाता, तब तक चुनाव आयोग को इसमें कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जाए। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार में मतदाता सूची पर SIR (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, और यदि पिछली सूची में गड़बड़ियां थीं, तो उनका खुलासा नहीं हो पाएगा।
### सुप्रीम कोर्ट और CJI की भूमिका
यह याचिका मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई के समक्ष प्रस्तुत की गई है, जो वर्तमान में कई संवैधानिक महत्व के मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। यदि CJI इस याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हैं, तो यह मामला देश की चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। याचिका के सूचीबद्ध होने पर सुप्रीम कोर्ट निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
1. **नोटिस जारी करना**: कोर्ट सबसे पहले चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर सकता है, ताकि वे अपने पक्ष को स्पष्ट करें।
2. **SIT का गठन**: यदि कोर्ट को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रारंभिक साक्ष्य पर्याप्त और गंभीर लगते हैं, तो वह एक पूर्व जज की अध्यक्षता में SIT गठन का आदेश दे सकता है। SIT को मतदाता सूची में डुप्लीकेट प्रविष्टियों, फर्जी मतदाताओं और फर्जी पतों की जांच करने का निर्देश दिया जा सकता है, जिसके लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की जाएगी।
3. **स्वतंत्र ऑडिट**: कोर्ट एक तटस्थ एजेंसी या विशेषज्ञ समिति द्वारा मतदाता सूची के स्वतंत्र ऑडिट का आदेश दे सकता है। यह ऑडिट मतदाता सूची की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करेगा।
4. **दिशानिर्देश जारी करना**: कोर्ट चुनाव आयोग को मतदाता सूची की तैयारी, रखरखाव और प्रकाशन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य दिशानिर्देश जारी करने का आदेश दे सकता है।
### जोखिम और चुनौतियां
हालांकि, इस याचिका के खारिज होने का भी जोखिम है। सुप्रीम कोर्ट इसे गंभीरता से न लेने का फैसला कर सकता है, क्योंकि यह याचिका मुख्य रूप से राहुल गांधी के आरोपों पर आधारित है, और अभी तक कोई ठोस हलफनामा या अतिरिक्त याचिकाएं दायर नहीं की गई हैं। इसके अलावा, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से उनके आरोपों के समर्थन में हलफनामा मांगा है, जिसे उन्होंने अभी तक प्रदान नहीं किया है। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि यदि चुनाव आयोग अन्य नेताओं, जैसे अनुराग ठाकुर या अखिलेश यादव, से भी हलफनामा मांगता है, तो वे भी हलफनामा देंगे। लेकिन आयोग ने इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की है।
### संभावित प्रभाव
यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है और SIT जांच या ऑडिट का आदेश देता है, तो यह भारत की चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है। यह मामला न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश की मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। यह संवैधानिक सिद्धांतों, जैसे "एक व्यक्ति, एक वोट" और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव, को प्रभावित करता है। यदि गड़बड़ियां सिद्ध हो जाती हैं, तो यह सत्ताधारी पार्टी को पिछले चुनावों में मिले लाभ पर भी सवाल उठा सकता है।
### निष्कर्ष
यह याचिका भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में निर्णायक होगा। यदि यह याचिका सूचीबद्ध होती है और जांच के आदेश दिए जाते हैं, तो यह चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में सुधार और मतदाता सूची की विश्वसनीयता को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। दूसरी ओर, यदि याचिका खारिज हो जाती है, तो यह राहुल गांधी और विपक्ष के लिए एक झटका हो सकता है, जो चुनाव आयोग पर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि यह मामला कितना गंभीर है और क्या इसे तत्काल सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाए। यह मामला लोकतंत्र की अखंडता से जुड़ा है, और इसका परिणाम देश की चुनावी प्रक्रिया पर लंबे समय तक प्रभाव डाल सकता है।
हमारी इस चर्चा को यहीं समाप्त करते हैं। आप सभी का हमसे जुड़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अपनी राय और विचार हमें कमेंट में जरूर बताएं। नमस्ते!