# ⚖️ न्यायपालिका में नियुक्तियों की पारदर्शिता पर सवाल: एक महिला जज की पीड़ा और सिस्टम की चुप्पी
Ranjeet Jha/The Samachar Express : न्यायपालिका को लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है। लेकिन जब यही स्तंभ अपने भीतर अन्याय को जन्म देने लगे, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। हाल ही में दी समाचार एक्सप्रेस की रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वे न केवल चौंकाने वाले हैं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।
## 🌐 नियुक्तियों में पक्षपात: सूर्य प्रताप सिंह का मामला
1 अगस्त 2025 को भारत सरकार के गजट में एक नोटिफिकेशन प्रकाशित हुआ, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में 10 अतिरिक्त जजों की नियुक्ति की गई। इस सूची में आठवें स्थान पर सूर्य प्रताप सिंह का नाम था। यह नाम सामान्य नहीं है—इनका संबंध पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई से इतना गहरा है कि इनकी नियुक्ति पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
### 📌 उत्पीड़न के आरोप और पक्षपाती जांच
- 2018 में एक महिला कोर्ट असिस्टेंट ने तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
- जांच कमेटी में सूर्य प्रताप सिंह को शामिल किया गया, जो उस समय सुप्रीम कोर्ट में रजिस्ट्रार थे और गोगोई के करीबी माने जाते थे।
- महिला ने आरोप लगाया कि जांच निष्पक्ष नहीं थी। 17 दिसंबर को जब वह सुनवाई के लिए पहुंची, तो बेहोश हो गई। बावजूद इसके, सूर्य प्रताप सिंह ने चार दिन बाद उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया।
## 🧾 द वायर की रिपोर्ट के खुलासे
- महिला ने दावा किया कि उसे बिना सुनवाई के टर्मिनेट किया गया।
- व्हाट्सऐप पर पूछे गए सवालों के जवाब में सूर्य प्रताप सिंह ने कोई स्पष्टता नहीं दी।
- द वायर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि महिला उस दिन सुप्रीम कोर्ट परिसर में समय पर पहुंची थी, लेकिन बेहोश हो गई थी।
## 👩⚖️ जज अदिति शर्मा का इस्तीफा: एक और पीड़ा की कहानी
मध्य प्रदेश की सिविल जज अदिति कुमार शर्मा ने 28 जुलाई 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने पत्र में लिखा:
> "मैं न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे रही हूं, इसलिए नहीं क्योंकि मेरी वजह से संस्था नाकाम हुई, बल्कि संस्था ने मुझे नाकाम कर दिया।"
### 🔍 उत्पीड़न के आरोप और संस्थागत चुप्पी
- अदिति शर्मा ने एक जिला जज पर यौन उत्पीड़न और जातीय भेदभाव के आरोप लगाए थे।
- इसके बावजूद उस जज को हाई कोर्ट में पदोन्नत कर दिया गया।
- अदिति शर्मा ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कॉलेजियम से पुनर्विचार की मांग की थी।
## 🏛️ संस्थागत विफलता और जवाबदेही की कमी
इन दोनों मामलों में एक समानता है—महिला अधिकारियों ने उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन सिस्टम ने उन्हें ही निशाना बनाया।
- अदिति शर्मा को 2023 में "असंतोषजनक प्रदर्शन" के आधार पर बर्खास्त किया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उन्हें बहाल किया, लेकिन जब उसी आरोपी जज को प्रमोट किया गया, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
## 🤔 सवाल जो उठते हैं
- क्या न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी है?
- क्या कॉलेजियम सिस्टम में जवाबदेही की कोई व्यवस्था है?
- क्या महिला अधिकारियों की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाता है?
- क्या न्यायपालिका अपने ही अधिकारियों के उत्पीड़न के मामलों में निष्पक्ष जांच करती है?
## 🔍 सूर्य प्रताप सिंह पर अन्य आरोप
- 2017 में सोनीपत में एक जमानत मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
- केस ट्रांसफर कर दो जजों के बीच मिलीभगत का शक हुआ।
- शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट में लिखित शिकायत दी, लेकिन कोई जांच नहीं हुई।
## 📣 निष्कर्ष
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो संस्थागत पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर कर रहे हैं। जब एक महिला अधिकारी को न्याय मांगने की कीमत अपना करियर छोड़कर चुकानी पड़े, तो यह पूरे सिस्टम की विफलता है।
## ✊ आगे क्या?
- न्यायपालिका को अपनी नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लानी होगी।
- उत्पीड़न के मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करनी होगी।
- कॉलेजियम सिस्टम को जवाबदेह बनाना होगा।
- महिला अधिकारियों की शिकायतों को प्राथमिकता और संवेदनशीलता से देखना होगा।