# क्या संजय कुमार का एक ट्वीट लोकतंत्र पर हमला बन गया? CSDS विवाद की पूरी कहानी
भारत में लोकतंत्र की मजबूती का एक बड़ा आधार स्वतंत्र शोध और निष्पक्ष संस्थाएं रही हैं। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) ऐसी ही एक संस्था है, जो दशकों से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर डेटा-आधारित रिसर्च करती रही है। लेकिन अगस्त 2025 में CSDS के सह-निदेशक संजय कुमार एक विवाद में फंस गए, जिसने न केवल उनकी व्यक्तिगत साख बल्कि पूरे संस्थान की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
## 🔥 विवाद की शुरुआत: एक ट्वीट और माफी
17 अगस्त 2025 को संजय कुमार ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच मतदाता सूची में भारी बदलाव का दावा किया। उन्होंने बताया कि रामटेक और देवलाली जैसे क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में 36-38% की कमी आई, जबकि नासिक वेस्ट और हिंगना जैसे क्षेत्रों में 43-47% की बढ़ोतरी हुई।
यह आंकड़े चौंकाने वाले थे और विपक्ष, खासकर कांग्रेस, ने इसे "वोट चोरी" के नैरेटिव को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया। लेकिन दो दिन बाद, संजय कुमार ने ट्वीट डिलीट कर माफी मांग ली। उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी टीम ने डेटा की पंक्ति को गलत पढ़ा और यह तुलना गलत थी।
हालांकि माफी के बावजूद विवाद थमा नहीं। BJP ने संजय कुमार पर कांग्रेस के नैरेटिव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और इसे "जानबूझकर की गई गलती" बताया।
## 🧨 CSDS पर हमला: FIR और फंडिंग खतरे में
संजय कुमार की माफी के बाद मामला और गंभीर हो गया। नासिक और नागपुर में उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई, जिसमें "चुनाव से संबंधित गलत बयान" और "सार्वजनिक उपद्रव" जैसे आरोप लगाए गए।
इसके साथ ही, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने CSDS को शो-कॉज नोटिस जारी किया। नोटिस में 11 प्रमुख अनियमितताओं का हवाला देते हुए संस्थान पर "डेटा में हेरफेर" और "चुनाव आयोग की छवि को नुकसान पहुंचाने" का आरोप लगाया गया। ICSSR ने चेतावनी दी कि CSDS की फंडिंग रद्द की जा सकती है, जो उनकी स्टाफ सैलरी और प्रशासनिक खर्चों का बड़ा हिस्सा कवर करती है।
यहां सवाल उठता है — क्या एक गलत ट्वीट इतनी बड़ी कार्रवाई का आधार हो सकता है? या यह स्वतंत्र शोध संस्थाओं को दबाने की एक रणनीति है?
## 🕵️♂️ क्या यह असहमति को चुप कराने की कोशिश है?
इस विवाद का एक बड़ा संदर्भ है। CSDS और संजय कुमार हाल के महीनों में चुनाव आयोग (ECI) की प्रक्रियाओं पर सवाल उठा रहे थे। खासकर बिहार में ECI की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर उनकी रिसर्च ने चौंकाने वाले तथ्य सामने लाए।
CSDS के सर्वे के अनुसार, 50% से ज्यादा लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, जिससे गरीब, दलित और प्रवासी वर्ग के वोटर लिस्ट से नाम कटने का खतरा है। संजय कुमार ने कहा था कि 2019 से 2025 के बीच ECI पर लोगों का भरोसा घटा है — "नो ट्रस्ट" का आंकड़ा 6% से बढ़कर 22-25% हो गया।
इन बयानों ने सरकार और चुनाव आयोग को असहज कर दिया। संजय कुमार का ट्वीट इस आग में घी डालने जैसा था। कांग्रेस ने इसे "वोट चोरी" के आरोपों को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया, जबकि BJP ने पलटवार करते हुए CSDS को "पक्षपाती" और संजय कुमार को "कांग्रेस का प्यादा" करार दिया।
यह पैटर्न दर्शाता है कि जब कोई संस्था सरकार या चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, तो उसे निशाना बनाया जाता है।
## ❓ क्या "वोट चोरी" के आरोप पूरी तरह गलत हैं?
सवाल यह है कि क्या संजय कुमार के गलत ट्वीट से यह साबित हो गया कि "वोट चोरी" के सारे आरोप झूठे हैं? इसका जवाब इतना सरल नहीं है।
संजय कुमार ने गलत तरीके से विधानसभा और लोकसभा डेटा की तुलना की थी, जिससे निष्कर्ष गलत निकले। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महाराष्ट्र में मतदाता सूची से जुड़े सारे सवाल खत्म हो गए।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अपने स्वतंत्र विश्लेषण के आधार पर भी "वोट चोरी" के आरोप लगाए थे। उदाहरण के लिए, पनवेल विधानसभा क्षेत्र में MVA उम्मीदवार बलराम पाटिल ने 85,211 डुप्लिकेट वोटर का दावा किया। राहुल गांधी ने भी महादेवपुरा (कर्नाटक) और अन्य राज्यों में मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाया।
ECI ने इन आरोपों को "बेबुनियाद" बताया, लेकिन वोटर लिस्ट को मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में देने या CCTV फुटेज साझा करने से इनकार कर दिया। इससे संदेह और बढ़ गया।
इसलिए, संजय कुमार का ट्वीट गलत था, लेकिन "वोट चोरी" के आरोपों को पूरी तरह खारिज करना जल्दबाजी होगी।
## 🧭 निष्कर्ष: गलती या लोकतंत्र पर हमला?
यह मामला सिर्फ एक ट्वीट की गलती नहीं है। यह उस माहौल की तस्वीर है जिसमें स्वतंत्र शोध और असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है। CSDS जैसी संस्था, जिसने दशकों तक लोकतंत्र को समझने में योगदान दिया है, आज एक गलती के कारण निशाने पर है।
सवाल यह है — क्या एक गलती की सजा इतनी बड़ी होनी चाहिए? क्या सरकार और संस्थाएं आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं? क्या यह लोकतंत्र में स्वतंत्र शोध और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है?
## 📣 आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि संजय कुमार को निशाना बनाया जा रहा है? क्या CSDS की फंडिंग रोकना उचित है? क्या "वोट चोरी" के आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए?
नीचे कमेंट करें और अपनी राय साझा करें। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो, तो इसे शेयर करें और हमारे प्लेटफॉर्म को सब्सक्राइब करें। हम ऐसे ही मुद्दों पर गहराई से बात करते रहेंगे।