ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया

नावकोठी/बेगूसराय/संवाददाता

प्रखण्ड क्षेत्र अन्तर्गत सभी पंचायतों में विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा- अर्चना धूमधाम और हर्षोल्लास पूर्वक किया गया।हिन्दू पंचाग के अनुसार माघ शुक्ल पक्ष के पंचमी ति​थि को वसंत पंचमी मनायी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सरस्वती पूजा के  दिन अबूझ मुहूर्त होने के कारण विवाह,गृह प्रवेश, मकान,वाहन या प्रॉपर्टी की खरीदारी भी किया जाता है।हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वसंत पंचमी को श्री पंचमी,मधुमास और ज्ञान पंचमी का नाम भी दिया गया है।वसंत पंचमी के दिन बसंत पंचमी का आगाज हो जाता है।सरस्वती माता को पीले फूल,पीले वस्त्र,पीले फूलों की माला,खीर,मालपुआ, बेसन के लड्डू,अक्षत्, सफेद चंदन,पीला गुलाल, पीला रोली आदि अर्पित कर भक्तों ने पूजा -पूजा अर्चना की।विद्या की आराध्य देवी माता सरस्वती को भक्तों ने ओम ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः मंत्र का जाप कर पूजन किया।हिंदू पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि को वाणी एवं ज्ञान देने के लिए माता सरस्वती को प्रकट किया था।उनकी कृपा से ही सृष्टि के जीवों को स्वर मिले थे।पौराणिक कथा के अनुसार,ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना और भगवान विष्णु को पालनहार की जिम्मेदारी मिली हुई है।भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को  मनुष्य योनी बनाने का सुझाव दिया।ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनी भी बना दी, इस प्रकार से सृष्टि की निर्माण कार्य हो रहा था।एक दिन ब्रह्मा जी पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे, उन्होंने सभी जीवों को देखा और अपनी रचना पर प्रसन्न हुए।हालांकि कुछ समय बाद उनको इस बात का एहसास हुआ कि पृथ्वी पर हर ओर शांति एवं सन्नाटा पसरा हुआ है।तब उनको वाणी,ज्ञान एवं क​ला की देवी का विचार आया। 

उन्होंने अपने कमंडल से जल निकाला और देवी का आह्वान करते हुए पृथ्वी पर छिड़क दिया। उसके प्रभाव से माता सरस्वती कमल आसन पर विराजमन होकर प्रकट हुईं।उनकी चार भुजाएं थीं,वे हाथों में पुस्तक,वीणा,माला धारण किए हुए आशीर्वाद दे रही थीं।ब्रह्मा जी ने उनको देवी सरस्वती के नाम से पुकारा।इस प्रकार से उनका नाम देवी सरस्वती हुआ।तब माता सरस्वती ने अपने वीणा के तार से मधुर ध्वनि  उत्पन्न की,फिर उससे जीवों को वाणी मिली।मां सरस्वती की कृपा से सृष्टि में अलग- अलग प्रकार की मधुर ध्वनियां सुनाई देने लगीं।समय के साथ साथ वाणी से गीत और संगीत निकले।उसी दिन से माता सरस्वती की पूजा ज्ञान की देवी के रूप में किया जाने लगा।

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