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'वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी' पर चुनाव आयोग को इकोनॉमिक टाइम्स ने कर दिया बेनकाब, मुंह छिपाने लगा ECI...



बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन: सच्चाई से भागता चुनाव आयोग?
लेखक: रंजीत झा

बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की गहन समीक्षा अब खुद चुनाव आयोग के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। सीमांचल क्षेत्र में बांग्लादेशी नागरिकों के वोटर लिस्ट में नाम जुड़ने की खबरें पहले "सूत्रों" के हवाले से मीडिया में फैलाई गईं, लेकिन अब जब खुद चुनाव आयोग के बयान सामने आने लगे हैं, तो सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है।
क्या सच में विदेशी वोटर हैं?



चुनाव आयोग के एक बयान में साफ कहा गया कि "हार्डली एनी फॉरेन नेशनल केसेस ऑन रोल्स", यानी मतदाता सूची में विदेशी नागरिकों के मामले ना के बराबर पाए गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 2019 तक ऐसी कोई ठोस शिकायत नहीं मिली, और 2018 में केवल तीन शिकायतें ही दर्ज हुई थीं, वो भी पश्चिम बंगाल, गुजरात और तेलंगाना से। सवाल उठता है कि फिर बिहार में ऐसी अफवाहें क्यों फैलीं?

अनुभूति बिश्नोई की रिपोर्ट और भांडा फोड़
इकोनॉमिक टाइम्स की पत्रकार अनुभूति बिश्नोई की रिपोर्ट ने सारा मामला उजागर कर दिया। चुनाव आयोग की दलीलों में विरोधाभास साफ दिखने लगे। आयोग या तो पहले गलत जानकारी दे रहा था या अब—दोनों ही स्थितियों में उसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आ गई है। यही वजह है कि आयोग अब एफआईआर दर्ज कराने का सहारा ले रहा है।

अजीत अंजुम पर कार्रवाई
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने सीमांचल और बलिया क्षेत्र में ग्राउंड रिपोर्टिंग की, जहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है। उनके ऊपर एफआईआर दर्ज की गई, जिससे पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़े हुए। अजीत अंजुम और उनके साथियों ने स्पष्ट किया है कि वे लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाएंगे।

दैनिक भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट
दैनिक भास्कर ने पूरे राज्य में 100 से ज्यादा रिपोर्टरों के जरिए समीक्षा की, और बड़े खुलासे किए:
बीएलओ घर-घर नहीं जा रहे, बल्कि लोगों से फोन पर मिलकर फॉर्म लेने की बात कह रहे हैं।
ऑनलाइन फॉर्म भरने के बावजूद बीएलओ ऑफलाइन कॉपी मांग रहे हैं।
कई बीएलओ खुद प्रक्रिया को लेकर कंफ्यूज हैं।
अवैध वसूली की शिकायतें भी सामने आई हैं।

भास्कर एक्सपर्ट डॉ. डीएम दिवाकर के अनुसार, अगर फॉर्म की रिसीविंग नहीं दी जाती, तो फॉर्म जमा करने का कोई प्रूफ नहीं रहता, जिससे नाम कट जाने का खतरा बना रहता है।


बीएलओ पर दबाव
करीब 10,000 फॉर्म अपलोड करने का टार्गेट दिया गया है, जिससे बीएलओ भारी दबाव में हैं। अब तक:
35 बीएलओ का वेतन रोका गया है।
कुछ को सस्पेंड किया गया है।
कुछ पर एफआईआर भी दर्ज की गई है।
सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग इतनी जल्दी में क्यों है? क्यों वह एक संवैधानिक संस्था होते हुए भी ऐसी हरकतें कर रहा है?

विपक्ष और वरिष्ठ पत्रकारों की प्रतिक्रिया
वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार, अभिसार शर्मा सहित कई लोगों ने ट्वीट करके सवाल उठाए:
क्या आयोग को अब एफआईआर आयोग कहा जाए?
बीएलओ द्वारा लिए गए फॉर्म की पावती (रसीद) क्यों नहीं दी जा रही?
आयोग को अजीत अंजुम का धन्यवाद करना चाहिए, ना कि उनके खिलाफ कार्रवाई।

अजीत अंजुम ने स्पष्ट कहा है: "सच दिखाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करके चुनाव आयोग अपनी ही कमजोरी उजागर कर रहा है।"
निष्कर्ष
बिहार की वोटर लिस्ट समीक्षा में सामने आए विरोधाभासों और प्रशासनिक अराजकता ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। बीएलओ की भूमिका, चुनाव आयोग की एफआईआर की रणनीति और विदेशी वोटर की अफवाहें सभी मिलकर लोकतंत्र की पारदर्शिता पर ग्रहण लगा रहे हैं।
यदि सच दिखाने वालों को सज़ा दी जाती है, तो एक संवैधानिक संस्था की गरिमा को खतरा होगा। मीडिया, नागरिक और न्यायिक तंत्र को मिलकर इस गहन मुद्दे को समझना और उठाना होगा, ताकि मतदाता अधिकार सुरक्षित रहें।



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