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SIR के बाद Bihar Voter List में हो गया गजब खेला, सबूत के साथ देखिए Chunav Aayog ECI का कारनामा

🗳️ बिहार में एसआईआर प्रक्रिया की सच्चाई: एक पत्रकार की आंखों से

भूमिका

नमस्कार, मैं रंजीत झा, पेशे से पत्रकार और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर। इस रिपोर्ट में मैं बिहार में चुनाव आयोग द्वारा की गई विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision - SIR) की सच्चाई आपके सामने रखने जा रहा हूं। यह रिपोर्ट न केवल मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, बल्कि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेजों और प्रक्रियाओं की गहराई से पड़ताल भी करती है।

🔍 एसआईआर प्रक्रिया का उद्देश्य

चुनाव आयोग का दावा है कि एसआईआर के माध्यम से बिहार की वोटर लिस्ट को दुरुस्त किया गया है। आयोग ने कहा कि इस प्रक्रिया में:

  • डुप्लीकेट वोटर्स को हटाया गया
  • छूटे हुए नामों को जोड़ा गया
  • गलतियों को सुधारा गया

लेकिन जब हमने इस प्रक्रिया को खुद अनुभव किया, तो सामने आईं चौंकाने वाली गड़बड़ियां, जो इस दावे को झूठा साबित करती हैं।

📂 वोटर लिस्ट की जांच: वेबसाइट से शुरूआत

सबसे पहले हमने चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट eci.gov.in पर जाकर बिहार एसआईआर ड्राफ्ट रोल 2025 को डाउनलोड किया। इसमें सभी विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट उपलब्ध थी। उदाहरण के तौर पर, बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र (क्रमांक 146) की लिस्ट लगभग 550 MB की ज़िप फाइल के रूप में उपलब्ध थी।

इस लिस्ट को खंगालना आसान नहीं था, इसलिए हमने सीईओ बिहार की वेबसाइट का सहारा लिया, जहां लॉगिन करके वोटर डिटेल्स को सर्च किया जा सकता है।

🧾 नाम की दोहरी प्रविष्टि: एक ही व्यक्ति, दो वोटर आईडी

जब हमने अपने नाम की खोज की, तो एक ही विधानसभा क्षेत्र, एक ही पार्ट नंबर में दो अलग-अलग प्रविष्टियां मिलीं:

विवरण प्रविष्टि 1 प्रविष्टि 2
नाम रंजीत कुमार रमन रंजीत कुमार रमन
पिता का नाम धनंजय कुमार झा धनंजय कुमार झा कुमार झा
मकान संख्या 74 74
सीरियल नंबर 644 645
एपिक नंबर अलग-अलग अलग-अलग

🧾 दस्तावेजों की अनदेखी और बीएलओ की लापरवाही

एसआईआर प्रक्रिया के दौरान:

  • मैंने ऑनलाइन डॉक्यूमेंट्स अपलोड किए
  • बीएलओ ने ऑफलाइन डॉक्यूमेंट्स भी मांगे
  • मैंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से जाकर डॉक्यूमेंट्स दिए

इसके बावजूद, बीएलओ ने एक गलत प्रविष्टि को भी वोटर लिस्ट में शामिल कर दिया, जिसमें मेरे पिता के नाम में "कुमार झा" दो बार लिखा गया है। यह दर्शाता है कि बीएलओ ने बिना जांच के, मनमाने तरीके से डेटा एंट्री की है।

📱 मोबाइल नंबर से लॉगिन पर भी दो प्रविष्टियां

जब मैंने मोबाइल नंबर से लॉगिन करके वोटर डिटेल्स सर्च की, तब भी वही दो प्रविष्टियां सामने आईं। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग की प्रणाली में डुप्लीकेट डेटा मौजूद है, जिसे हटाने का दावा किया गया था।

❓ सवाल जो चुनाव आयोग से पूछे जाने चाहिए

  • जब मैंने केवल एक एपिक कार्ड के लिए डॉक्यूमेंट्स दिए, तो दूसरा नाम कैसे जुड़ गया?
  • बीएलओ ने किस आधार पर गलत प्रविष्टि को स्वीकार किया?
  • जब आयोग कहता है कि 7 लाख डुप्लीकेट वोटर्स हटाए गए, तो मेरे दो नाम क्यों मौजूद हैं?
  • क्या एसआईआर प्रक्रिया केवल दिखावे के लिए की गई?
  • क्या आयोग की डिजिटल प्रणाली इतनी कमजोर है कि एक व्यक्ति के दो नाम रह जाएं?

⚠️ एसआईआर की विफलता के परिणाम

  • आम नागरिकों को बार-बार दस्तावेज़ देने पड़ते हैं
  • सही नाम होने के बावजूद गलत प्रविष्टि जुड़ जाती है
  • वोटर लिस्ट में भ्रम की स्थिति पैदा होती है
  • चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं

📣 आयोग की प्रतिक्रिया और नागरिकों की जिम्मेदारी

चुनाव आयोग ने कहा है कि जिनका नाम छूट गया है या गलत है, वे शिकायत दर्ज करा सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि:

  • क्या हर नागरिक तकनीकी रूप से सक्षम है?
  • क्या हर कोई बार-बार बीएलओ के पास जाकर सुधार करवा सकता है?
  • क्या आयोग की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह पहले से सही नामों को गलत न करे?

✍️ निष्कर्ष

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव आयोग की प्रणाली में गंभीर खामियां हैं। एक पत्रकार के रूप में मेरा अनुभव यह बताता है कि:

  • पारदर्शिता केवल कागजों पर है
  • डिजिटल सुधारों का दावा खोखला है
  • आम नागरिकों को परेशान करने वाली प्रक्रिया है

यह रिपोर्ट एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति के नाम से दो वोटर आईडी बन सकते हैं, और कैसे चुनाव आयोग की प्रणाली में सुधार की सख्त जरूरत है।

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