*📰 रिपोर्ट: राष्ट्रपति केस में नया मोड़ – सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के बीच संवैधानिक टकराव*
✍ By Line: रंजीत झा, The Samachar Express
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### 🔍 प्रस्तावना
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे राष्ट्रपति केस ने देश की राजनीति और संवैधानिक व्यवस्था में एक नया मोड़ ला दिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत पूछे गए 14 सवालों ने न केवल सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दी है, बल्कि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस मामले में केरल सरकार द्वारा दाखिल की गई याचिका ने पूरे विवाद को और अधिक पेचीदा बना दिया है।
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### ⚖ मामला क्या है?
राष्ट्रपति मुर्मू ने अनुच्छेद 143 का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक सवाल पूछे, जिनका उद्देश्य उन फैसलों की समीक्षा करना था जिनमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय की गई थी। इन फैसलों को ऐतिहासिक माना गया था, विशेष रूप से जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच द्वारा दिए गए निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल "पॉकेट वीटो" का प्रयोग नहीं कर सकते।
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### 🧠 केरल सरकार की आपत्ति
केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दाखिल कर राष्ट्रपति के अनुच्छेद 143 के प्रयोग को ही चुनौती दी है। उनका तर्क है कि:
#### 1️⃣ समय सीमा पहले ही तय हो चुकी है
- अनुच्छेद 200 में "as soon as possible" का उल्लेख है।
- तेलंगाना और पंजाब के मामलों में इसकी व्याख्या हो चुकी है।
- तमिलनाडु केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
#### 2️⃣ तमिलनाडु केस को नजरअंदाज करना
- राष्ट्रपति ने तमिलनाडु केस का उल्लेख नहीं किया, जबकि वही 11 सवालों के जवाब पहले ही दे चुका है।
- यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अप्रत्यक्ष रूप से बदलने की कोशिश है।
#### 3️⃣ संविधान का दुरुपयोग
- अनुच्छेद 143 का प्रयोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए नहीं किया जा सकता।
- यदि केंद्र सरकार को असहमति थी, तो उसे समीक्षा याचिका (Review Petition) दाखिल करनी चाहिए थी।
#### 4️⃣ कोर्ट को अपने फैसले पर अपील नहीं करनी चाहिए
- सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर सकता।
- राष्ट्रपति कोर्ट को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
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### 👨⚖ सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच और विचारणीय प्रश्न
22 जुलाई से सीजेआई बी आर गवई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच बैठी है। इस बेंच के सामने चार मुख्य संवैधानिक प्रश्न हैं:
| क्रम | प्रश्न |
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| 1️⃣ | क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका की शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकता है? |
| 2️⃣ | क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है? |
| 3️⃣ | क्या उनके फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं? |
| 4️⃣ | क्या "डम्ड एसेंट" की अवधारणा संविधान के अनुकूल है? |
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर दिया है।
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### 🧩 संवैधानिक पेच और राजनीतिक असर
केरल सरकार का दावा है कि राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए 14 सवालों में से 11 के जवाब पहले ही दिए जा चुके हैं। ऐसे में अनुच्छेद 143 का प्रयोग दोबारा करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह संविधान की भावना के खिलाफ भी है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है, तो यह राष्ट्रपति की भूमिका और शक्तियों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करेगा।
यदि सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व फैसले को पलटता है, तो यह संकेत होगा कि राष्ट्रपति संविधान से ऊपर हो गए हैं। इससे विपक्ष शासित राज्यों पर केंद्र सरकार की मनमानी बढ़ सकती है, और संवैधानिक संतुलन बिगड़ सकता है।
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### 🔮 निष्कर्ष और आगे की राह
इस पूरे मामले में अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा है। अगली सुनवाई अगस्त के मध्य में निर्धारित की गई है। यह फैसला न केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों की भूमिका को पुनर्परिभाषित करेगा, बल्कि यह तय करेगा कि संविधान सर्वोच्च है या कोई पद।
यदि सुप्रीम कोर्ट केरल सरकार के तर्कों को स्वीकार करता है, तो यह केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के लिए एक बड़ा झटका होगा। वहीं अगर कोर्ट अपने पुराने फैसले को पलटता है, तो यह संवैधानिक व्यवस्था में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा।
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*📌 अंतिम विचार:*
संविधान की सर्वोच्चता ही लोकतंत्र की नींव है। चाहे राष्ट्रपति हों या प्रधानमंत्री, सभी को संविधान के दायरे में रहकर कार्य करना होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आने वाले वर्षों की राजनीति और शासन प्रणाली को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
*धन्यवाद!*
रिपोर्ट: रंजीत झा, The Samachar Express