देखिए वीडियो: CJI गवई ने राष्ट्रपति केस पर लिया बड़ा एक्शन
सुप्रीम कोर्ट में आज जो हुआ, उससे हर राज्य की नजरें टिकी हुई हैं। कोर्टरूम की हलचल और संवैधानिक बहस को विस्तार से जानिए इस वीडियो में।
वीडियो स्रोत: देश समाचार एक्सप्रेस | प्रस्तुतकर्ता: रंजीत झा
🏛️ सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक टकराव पर ऐतिहासिक बहस: एक विस्तृत रिपोर्ट
**लेखक: रंजीत झा | स्रोत: देश समाचार एक्सप्रेस**
देश की राजनीति और न्यायपालिका में इन दिनों एक अभूतपूर्व हलचल देखी जा रही है। एक ओर उपराष्ट्रपति का अचानक इस्तीफा चर्चा का विषय बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति द्वारा आर्टिकल 143 के तहत उठाए गए 14 सवालों पर बहस शुरू हो चुकी है। यह मामला न केवल संवैधानिक संस्थानों के बीच शक्ति संतुलन को लेकर है, बल्कि भारत के संघीय ढांचे की दिशा भी तय कर सकता है।
🔍 मामला क्या है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं। इन सवालों का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्यों द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन शामिल थे, ने पहले ही एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान से ऊपर नहीं हैं और उन्हें विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक निश्चित समय सीमा में काम करना होगा।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पांच जजों की संविधान पीठ गठित की है। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस एएस चंदूकर और जस्टिस नरसिम्हा शामिल हैं। पहले दिन की सुनवाई में देश के कई वरिष्ठ वकील उपस्थित थे, जिनमें कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और केरल राज्य की ओर से केके वेणुगोपाल शामिल थे।
सीजेआई ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को एक सप्ताह के भीतर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है ताकि वे सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख सकें। अगली सुनवाई की संभावित तारीख 29 जुलाई 2025 तय की गई है।
🗣️ कोर्ट रूम की हलचल
सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में कई रोचक घटनाएं भी देखने को मिलीं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा, “इतनी भी क्या जल्दी है?” जिस पर कोर्ट में हल्की-फुल्की हंसी का माहौल बन गया। उन्होंने मजाक में कहा कि बार-बार अनुरोध तो तभी सफल होता है जब कोई पुरुष किसी लड़की को प्रपोज करे। इस पर कपिल सिब्बल ने भी मजाकिया अंदाज में प्रतिक्रिया दी।
🏛️ तमिलनाडु की भूमिका
तमिलनाडु इस पूरे मामले में केंद्र में रहा है। राज्यपाल आरएन रवि द्वारा विधेयकों को लंबित रखने की प्रवृत्ति के खिलाफ स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा दी जाएगी। तमिलनाडु के वरिष्ठ अधिवक्ता विल्सन ने कहा कि यह मामला उनके राज्य को सीधे प्रभावित करता है। लेकिन सीजेआई ने स्पष्ट किया कि अब यह मामला केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश को प्रभावित करेगा।
🧭 संघीय ढांचे पर असर
यह मामला भारत के संघीय ढांचे को नई दिशा देने वाला है। सवाल यह है कि सर्वोच्च कौन है—राष्ट्रपति, संसद, सुप्रीम कोर्ट या संविधान? सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि संविधान सर्वोच्च है और उसके तहत ही सभी संस्थाएं कार्य करती हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करता है, तो यह उनकी स्वायत्ता पर प्रभाव डाल सकता है। लेकिन यदि समय सीमा नहीं तय की जाती, तो केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच टकराव की स्थिति बनी रह सकती है।
📌 निष्कर्ष और आगे की राह
इस मामले में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह भारत के लोकतंत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 का प्रयोग और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता इस बात का संकेत है कि संवैधानिक संस्थानों के बीच संतुलन बनाए रखना अब अनिवार्य हो गया है।
अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें यह तय होगा कि कौन-कौन पक्षकार सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित होंगे और बहस किस दिशा में आगे बढ़ेगी। देश की निगाहें इस मामले पर टिकी हुई हैं, क्योंकि इसका असर न केवल वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य की संवैधानिक व्याख्याओं को भी प्रभावित करेगा।