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Supreme Court से टकराते रहे Jagdeep Dhankhar ने उपराष्ट्रपति पद से दे दिया इस्तीफा

Ranjeet Jha/ The Samachar Express : मस्कार, यह एक ऐसी खबर है जिसने पूरे देश को हैरान कर दिया है। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह खबर न केवल राजनीतिक हलकों में, बल्कि आम जनमानस में भी चर्चा का विषय बन गई है। आखिर क्या कारण रहा कि धनखड़ ने बीच सत्र में इतना बड़ा फैसला लिया? क्या यह स्वास्थ्य कारणों से लिया गया निर्णय है, जैसा कि उन्होंने अपने इस्तीफे में उल्लेख किया, या इसके पीछे कोई गहरा राजनैतिक या संवैधानिक कारण है? इस रिपोर्ट में हम इस घटना के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि इस इस्तीफे के पीछे की कहानी क्या हो सकती है। watch video : बीच सत्र उपराष्ट्रपति का इस्तीफा, मचा हड़कंप, जुडिशरी से थे खासे खफा? अब....

इस्तीफे की घोषणा और प्रारंभिक प्रतिक्रियाएँ जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे की घोषणा एक पत्र के माध्यम से की, जो उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित किया। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि वे चिकित्सा सलाह का पालन करते हुए और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहे हैं। पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और संसद के सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया और अपने कार्यकाल को एक सम्मानजनक अवसर बताया। उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक स्थिति पर गर्व जताते हुए अपने अनुभवों को साझा किया। हालांकि, इस पत्र में व्यक्त की गई औपचारिकता और सौहार्दपूर्ण भाषा के बावजूद, यह सवाल उठता है कि क्या यह इस्तीफा वास्तव में केवल स्वास्थ्य कारणों से लिया गया निर्णय था, या इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। राजनीतिक गलियारों में इस इस्तीफे को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ लोग इसे सरकार के दबाव का परिणाम मान रहे हैं, तो कुछ इसे सुप्रीम कोर्ट और संसद के बीच चल रहे तनाव से जोड़कर देख रहे हैं। 

 जगदीप धनखड़ का कार्यकाल: एक विवादास्पद यात्रा जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल कई मायनों में विवादास्पद रहा है। विशेष रूप से, उनकी सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के साथ बार-बार होने वाली तकरार ने उन्हें सुर्खियों में रखा। धनखड़ ने कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 142 के उपयोग, की आलोचना की थी। उन्होंने इस अनुच्छेद को "न्यूक्लियर मिसाइल" तक की संज्ञा दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट अपने विवेकाधीन अधिकारों के तहत इस्तेमाल करता है। इस तरह की टिप्पणियों ने न केवल न्यायपालिका को नाराज किया, बल्कि विपक्षी नेताओं, जैसे कपिल सिब्बल, को भी उनके खिलाफ बोलने का मौका दिया। कपिल सिब्बल ने धनखड़ पर संवैधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया और उनकी भाषा पर सवाल उठाए। सिब्बल ने कहा कि एक संवैधानिक पदाधिकारी को ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए, जो देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था को कमजोर करती हों। 

इसके अलावा, धनखड़ का संसद में विपक्षी सांसदों के साथ व्यवहार भी चर्चा का विषय रहा। उनके कार्यकाल में सैकड़ों विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया, जिसे विपक्ष ने "लोकतंत्र का गला घोंटने" की कार्रवाई करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव कई मौकों पर स्पष्ट रूप से सामने आया। विशेष रूप से, यशवंत वर्मा और शेखर यादव के मामलों में उनकी टिप्पणियों ने विवाद को जन्म दिया। यशवंत वर्मा के खिलाफ इम्पीचमेंट की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में धनखड़ की भूमिका को कपिल सिब्बल ने असमान रवैया करार दिया। सिब्बल ने आरोप लगाया कि धनखड़ ने शेखर यादव के मामले में समान कदम नहीं उठाए, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठे। इसके अलावा, धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को कार्यपालिका में दखल देने से रोकने की कोशिश की। उन्होंने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से सीजेआई को हटाए जाने का समर्थन किया और इसे अपनी जीत के रूप में देखा। उनकी यह धारणा थी कि सुप्रीम कोर्ट को कार्यपालिका और विधायिका के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि संविधान ही सर्वोच्च है, और उसकी शक्तियाँ सरकार के फैसलों की संवैधानिकता की समीक्षा करने की अनुमति देती हैं। स्वास्थ्य कारण या राजनैतिक दबाव? धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन यह कारण कई लोगों को पर्याप्त नहीं लगता। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस इस्तीफे के पीछे कई अन्य कारक हो सकते हैं। मसलन, क्या यह सरकार का दबाव था? क्या धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट के साथ लगातार तकरार सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही थी? या फिर संसद में विपक्ष द्वारा ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर सत्ता पक्ष को घेरने के कारण धनखड़ पर दबाव बढ़ गया था? यह भी उल्लेखनीय है कि धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर एक महत्वपूर्ण बहस शुरू करने जा रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवालों के साथ चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके लिए समयसीमा कैसे निर्धारित की। इस बहस में संविधान की सर्वोच्चता और विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं की शक्तियों की सीमा पर विचार होना है। ऐसे में, धनखड़ का इस्तीफा इस बहस को और जटिल बना सकता है। 

 इतिहास में उपराष्ट्रपति के इस्तीफे : भारत के इतिहास में उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा न कर पाने के बहुत कम उदाहरण हैं। वी.वी. गिरी और कृष्णकांत दो ऐसे नाम हैं, जिनका कार्यकाल बीच में समाप्त हुआ था। गिरी ने अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए इस्तीफा दिया था, जबकि कृष्णकांत का निधन हो गया था। धनखड़ का मामला इनसे अलग है, क्योंकि उनका इस्तीफा न तो स्पष्ट रूप से राजनैतिक है और न ही किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना का परिणाम। यह स्थिति इसे और भी रहस्यमयी बनाती है। आगे क्या? धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब सवाल यह है कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? क्या यह नियुक्ति भी सरकार के इशारे पर होगी, जैसा कि विपक्ष का आरोप है? क्या यह इस्तीफा संवैधानिक संकट की ओर इशारा करता है, जैसा कि कुछ विश्लेषक मान रहे हैं? यह भी संभव है कि अगले कुछ दिनों में नया उपराष्ट्रपति नियुक्त कर दिया जाए, जैसा कि सरकार की त्वरित कार्यशैली को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है। 

 निष्कर्ष : जगदीप धनखड़ का इस्तीफा न केवल एक अप्रत्याशित घटना है, बल्कि यह देश की संवैधानिक और राजनैतिक व्यवस्था में कई सवाल खड़े करता है। क्या यह इस्तीफा उनकी व्यक्तिगत पसंद थी, या इसके पीछे सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रहा तनाव है? क्या यह संसद और विपक्ष के बीच बढ़ते टकराव का परिणाम है? इन सवालों का जवाब समय के साथ ही मिलेगा। फिलहाल, यह स्पष्ट है कि यह घटना भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज होगी। हम आशा करते हैं कि यह रिपोर्ट आपको इस घटना के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करेगी। इस विषय पर आपकी राय और विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। कृपया अपनी प्रतिक्रिया साझा करें, ताकि हम इस चर्चा को और गहराई तक ले जा सकें।

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