Ranjeet Jha/The Samachar Express :Voter List पर ADR ने चुनाव आयोग के उड़ाए होश,Supreme Court में फैसले से पहले ECI हलफनामे की निकाली हवा,🗳️ बिहार वोटर लिस्ट एसआईआर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बहस की तैयारी
🔍 पृष्ठभूमि और विवाद की शुरुआत
बिहार में वोटर लिस्ट की एसआईआर (Special Intensive Revision) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गंभीर बहस चल रही है। 10 जुलाई को हुई सुनवाई में जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जय मालिया बागची ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने आधार, राशन कार्ड और एपिक कार्ड को समान रूप से वैध दस्तावेज मानने की बात कही और चुनाव आयोग से इसके खिलाफ ठोस कारण मांगे।
⚖️ चुनाव आयोग का पक्ष
21 जुलाई को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा:
आयोग को नागरिकता जांचने का अधिकार है।
यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 324, 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 व 19 से प्राप्त होता है।
आयोग ने दावा किया कि वह बिहार के बाद पूरे देश में एसआईआर लागू करेगा।
🧾 एडीआर का प्रत्युत्तर
प्रशांत भूषण के नेतृत्व में एडीआर (Association for Democratic Reforms) ने चुनाव आयोग के हलफनामे पर जवाब दाखिल किया:
आधार और राशन कार्ड को अस्वीकार करने का कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।
यदि आधार और राशन कार्ड फर्जी हो सकते हैं, तो अन्य 11 स्वीकृत दस्तावेज भी फर्जी हो सकते हैं।
आधार को कई सरकारी सेवाओं में मान्यता प्राप्त है, इसलिए इसे वोटर लिस्ट से बाहर करना अनुचित है।
⚠️ प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
एडीआर ने एसआईआर प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए:
ईआरओ (Electoral Registration Officer) पर लाखों फॉर्म की जिम्मेदारी है, लेकिन कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है।
कई जगहों पर वोटरों की मौजूदगी के बिना फॉर्म भरे जा रहे हैं।
बीएलओ (Booth Level Officer) द्वारा बिना भौतिक सत्यापन के फॉर्म अपलोड किए जा रहे हैं।
📉 वोटर वंचित होने का खतरा
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार:
22 लाख मृत वोटर बताए गए हैं।
7 लाख वोटर दो जगहों पर दर्ज हैं।
35 लाख वोटर ट्रेस नहीं किए जा सके।
1.2 लाख वोटर के फॉर्म रिसीव नहीं हुए।
➡️ कुल मिलाकर 60 लाख से अधिक वोटर वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
⏳ अपील की समयसीमा और दस्तावेजी संकट
एडीआर ने चेताया:
अक्टूबरनवंबर 2025 के चुनाव से पहले अपील का समय बहुत कम है।
दस्तावेजों की कमी के कारण लाखों वोटर प्रभावित हो सकते हैं।
🌍 प्रवास और जनसंख्या बदलाव पर सवाल
चुनाव आयोग ने एसआईआर की जरूरत प्रवास और जनसंख्या बदलाव बताया, लेकिन एडीआर ने कहा:
वोटर लिस्ट अपडेट करना एक सतत प्रक्रिया है।
बिहार में 3 महीने की समयसीमा कई पात्र वोटरों को जोखिम में डाल रही है।
🧾 नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी पर आपत्ति
एडीआर ने चुनाव आयोग के उस दावे को चुनौती दी जिसमें मौजूदा वोटरों को अपनी नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी दी गई:
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों (इंद्रजीत बरवा बनाम ईसीआई, 1985 और लालबाबू हुसैन, 1995) के अनुसार मौजूदा वोटर सूची नागरिकता का प्रारंभिक प्रमाण है।
नई पंजीकरण कराने वालों पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, न कि पहले से सूची में शामिल लोगों पर।
🏛️ गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग की भूमिका
गृह मंत्रालय ने 30 दिन में "एलियन" की पहचान करने का आदेश दिया था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया। चुनाव आयोग ने बाद में यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, जिससे सवाल उठता है कि:
वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करते समय नागरिकता की जांच क्यों नहीं की गई?
अब नागरिकता साबित करने का बोझ जनता पर क्यों डाला जा रहा है?
⚖️ लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर असर
एडीआर ने चेताया:
एसआईआर की मौजूदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी है।
यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 और 326 (चुनावी अधिकार) का उल्लंघन है।
👨⚖️ 28 जुलाई की सुनवाई और नई बेंच
अब 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी:
जस्टिस सुधांशु धुलिया की जगह जस्टिस सूर्यकांत आए हैं।
जस्टिस जय मालिया बागची पहले से मौजूद हैं।
➡️ देखना होगा कि नई बेंच इस मामले को किस दिशा में ले जाती है।
🔚 निष्कर्ष
बिहार में एसआईआर प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। लाखों वोटरों के अधिकार खतरे में हैं। एडीआर ने चुनाव आयोग की दलीलों को चुनौती दी है और पारदर्शिता की मांग की है। 28 जुलाई की सुनवाई लोकतंत्र की दिशा तय करने वाली साबित हो सकती है।